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जनसत्ता विश्लेषण 3/07/2024

  • Writer: Smriti IASxp
    Smriti IASxp
  • Jul 3, 2024
  • 2 min read


भारतीय प्राणि सर्वेक्षण (Zoological Survey of India - ZSI) भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत एक संगठन है।

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इसकी स्थापना 1916 में हुई थी। ZSI का मुख्य उद्देश्य भारत की विविध प्राणि संपदा का सर्वेक्षण, अन्वेषण और अनुसंधान करना है। इसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:


1. प्राणि सर्वेक्षण और निगरानी: भारत के विभिन्न क्षेत्रों में प्राणि प्रजातियों के वितरण, विविधता और स्थिति का अध्ययन और निगरानी करना।


2. वर्गीय अनुसंधान: विभिन्न प्राणि समूहों के वर्गीय अध्ययन करना और देश की प्राणि संपदा का एक संग्रह बनाए रखना।


3. जैव विविधता संरक्षण: अनुसंधान के माध्यम से जैव विविधता के संरक्षण को समर्थन और बढ़ावा देना तथा नीति-निर्माण के लिए वैज्ञानिक डेटा प्रदान करना।


4. प्रलेखन और प्रकाशन: भारतीय प्राणियों की जानकारी का प्रलेखन और प्रकाशन करना, जिसमें प्राणि एटलस, चेकलिस्ट और पहचान मैनुअल का निर्माण शामिल है।


5. क्षमता निर्माण: प्राणीशास्त्र और वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में शोधकर्ताओं, छात्रों और अन्य हितधारकों को प्रशिक्षण और समर्थन प्रदान करना।


ZSI का मुख्यालय कोलकाता में स्थित है,


और भारत भर में इसके कई क्षेत्रीय केंद्र हैं जो विशेष प्राणि समूहों और पारिस्थितिक तंत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।


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2.केयर स्टार्मर : एक ब्रिटिश राजनीतिज्ञ हैं जो अप्रैल 2020 से लेबर पार्टी के नेता और विपक्ष के नेता के रूप में कार्यरत हैं। उनका जन्म 2 सितंबर 1962 को हुआ था।


राजनीति में आने से पहले, स्टार्मर ने एक बैरिस्टर के रूप में एक प्रतिष्ठित करियर बनाया।


3.डीपफेक (Deepfake) एक प्रकार की तकनीक है जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग का उपयोग करके नकली मीडिया सामग्री (वीडियो, ऑडियो, इमेज) बनाने के लिए होती है। यह नाम "डीप लर्निंग" और "फेक" शब्दों के संयोजन से बना है।


डीपफेक तकनीक के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:


1. तकनीकी आधार: डीपफेक्स का निर्माण गहन सीखने (डीप लर्निंग) और जनरेटिव एडवर्सेरियल नेटवर्क्स (GANs) का उपयोग करके किया जाता है। ये तकनीकें वास्तविक और नकली डेटा के बीच अंतर सीखती हैं और फिर नकली डेटा उत्पन्न करती हैं जो असली जैसा लगता है।


2. उपयोग: डीपफेक्स का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है, जैसे मनोरंजन, विज्ञापन, और कला। हालांकि, इसका दुरुपयोग भी हो सकता है, जैसे गलत सूचना फैलाना, फर्जी समाचार बनाना, और व्यक्तियों को बदनाम करना।


3. चुनौतियाँ और खतरें: डीपफेक्स के कारण विभिन्न नैतिक और कानूनी चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं। यह तकनीक पहचान की चोरी, धोखाधड़ी, और साइबर धमकी के लिए उपयोग की जा सकती है। इसके अलावा, यह सच और झूठ के बीच की रेखा को धुंधला कर सकती है, जिससे समाज में अविश्वास फैल सकता है।


4. रोकथाम और समाधान: डीपफेक्स का पता लगाने और उनसे निपटने के लिए विभिन्न तकनीकें और उपाय विकसित किए जा रहे हैं। इनमें डीपफेक डिटेक्शन टूल्स, नियामक उपाय, और जन जागरूकता अभियान शामिल हैं।


5. आधिकारिक दृष्टिकोण: कई सरकारें और संगठन डीपफेक्स के नियमन और दुरुपयोग को रोकने के लिए नीतियाँ और कानून बना रहे हैं। सोशल मीडिया प्लेटफार्म भी डीपफेक सामग्री का पता लगाने और उसे हटाने के लिए कदम उठा रहे हैं।


डीपफेक तकनीक का भविष्य में उपयोग और प्रभाव किस प्रकार होगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि समाज इसे कैसे नियंत्रित और प्रबंधित करता है।

 
 
 

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